A poem on the problem of climate change, environment and clean energy
किसी पेड़ ने उस पंछी को अब तक नहीं उड़ाया है
जिसने शाखें नहीं उजाड़ी केवल फल को खाया है
चिड़ी चोंच भर ले जाती है नदी नीर क्या कम होता?
प्यास बुझाकर प्यासे की कब कम होता जल का सोता
शिशु को दूध पिला कर किस माता की घटती काया है?
जब तक सीमाकरण न होगा पर्यावरण बचेगा क्या?
कोटि दुयोधन हाथ, द्रौपदी का आभरण बचेगा क्या?
मोह सँवरण नहीं, प्रकृति का कल्पवृक्ष बच पाया है ?
अगर प्रश्न है जठर अग्नि का जल के कितने स्रोत रखे
कोई ऐसा पेय नहीं जो काम अग्नि को बुझा सके
संयति के दृढ़ तीर न होंगे कब सागर रुक पाया है ?
प्रश्न यह नहीं इस वाहन को कैसी शक्ति चलायेगी
जब तक गति पर रोक न होगी बात वहीं रह जाएगी
सुविधा के गमले में कब शिव का बरगद उग पाया है
Leave a Reply
Want to join the discussion?Feel free to contribute!